छत्तीसगढ़ में आरक्षक संवर्ग के 5,967 पदों पर भर्ती प्रक्रिया पर बिलासपुर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। इस भर्ती में पुलिसकर्मियों के बच्चों को शारीरिक परीक्षण (फिजिकल टेस्ट) में छूट दी गई थी, जिसके खिलाफ याचिका दायर की गई थी। भर्ती प्रक्रिया 16 नवंबर से शुरू हो चुकी थी।
नियमों में बदलाव पर कोर्ट की आपत्ति
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति राकेश मोहन पांडेय ने कहा कि भर्ती के नियमों में बदलाव करते हुए केवल पुलिसकर्मियों के परिवारों को लाभ देना अनुचित है। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि किसी भी लाभ का दायरा सभी आवेदकों तक होना चाहिए।
फिजिकल टेस्ट में छूट का मामला
भर्ती प्रक्रिया के दौरान, पुलिस महानिदेशक (DG) ने राज्य सचिव को एक पत्र लिखा था, जिसमें पुलिसकर्मियों और भूतपूर्व सैनिकों (Ex-Servicemen) के बच्चों को फिजिकल टेस्ट में छूट देने का सुझाव दिया गया। यह छूट 2007 के भर्ती नियमों के तहत 9 मानकों, जैसे ऊंचाई और सीने की चौड़ाई, में शिथिलता प्रदान करने की बात पर आधारित थी।
अवर सचिव ने इस सुझाव को स्वीकार कर लिया। इसी के बाद याचिकाकर्ता बेदराम टंडन ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह छूट सामान्य नागरिकों के साथ भेदभावपूर्ण है। उनके बेटे ने राजनांदगांव में कॉन्स्टेबल पद के लिए आवेदन किया था।
आम नागरिकों के साथ भेदभाव का आरोप
याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि केवल पुलिस विभाग के कर्मचारियों के बच्चों को इस प्रकार की छूट देना आम आवेदकों के साथ अन्याय है। उन्होंने मांग की कि भर्ती प्रक्रिया पर तुरंत रोक लगाई जाए। वकील की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने भर्तियों पर अंतरिम रोक लगा दी।
राज्य शासन की दलील पर कोर्ट का रुख
राज्य सरकार ने दलील दी कि 2007 के भर्ती नियमों के तहत पुलिसकर्मियों के परिवारों को छूट देने का प्रावधान है। इस पर कोर्ट ने सवाल उठाते हुए कहा कि डीजीपी को नियमों में बदलाव का अधिकार तो है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे मनमानी करें।
पद के दुरुपयोग का आरोप
हाईकोर्ट ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया में केवल पुलिसकर्मियों और उनके परिवारों को प्राथमिकता देना पद के दुरुपयोग जैसा है। नियमों का लाभ सभी वर्गों को समान रूप से मिलना चाहिए। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि नियम बनाकर अपने फायदे के लिए भर्ती प्रक्रिया में छूट देना अनुचित है।
हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद छत्तीसगढ़ में आरक्षक भर्ती प्रक्रिया पर अनिश्चितता के बादल छा गए हैं। अब इस मामले में आगे की सुनवाई और फैसले का इंतजार है।